शनिवार, 5 सितंबर 2009

सुख का राज़ --संतुलन

सुख का राज़ जीवन जीने का सही रूप है एक संतुलित जीवन जीना संतुलन हमारे जीवन के सभी क्षेत्र में होना चाहिए --चाहे भावनाओं का संतुलन हो, शारीरिक संतुलन हो ,आर्थिक संतुलन हो ,खान-पान का संतुलन हो ,व्यवहार का संतुलन हो या आध्यात्मिक संतुलन हो किसी भी एक क्षेत्र में संतुलन बिगड़ता है तो जीवन में हलचल और तनाव शुरू हो जाता है व्यवहार तो जीवन पर्यंत चलते हैं पर एक आदर्श जीवन जीना है तो हमें सामाजिक और आध्यात्मिक जीवन में भी संतुलन करना होगा मन का काम है भटकना पर बुद्धि के द्वारा हम उसे वश में रख सकते हैं शरीर रथ है ,मन घोड़ा है बुद्धि या ज्ञान लगाम हैं ,जिसके द्वारा हम मन को वश में करते हैं अगर हमारा संतुलन ठीक होता है तो हम सुखी जीवन जी पाते हैं यही सुख की कुंजी है ,सफलता का राज़ है एक संतुलन हजार परेशानी दूर करता है अस्तु ..........प्रकृति भी हमें यही संदेश देती है

शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

पितरपक्ष और श्राद्ध

अब श्राद्ध ,पितर पक्ष या महालय का समय प्रारंभ हो गया है यह १६ दिनों तक चलेगा श्राद्ध क्या है ?.......जब हम अपने पितरों के प्रति श्रद्धा पूर्वक अपने कर्तव्य का पालन करते हैं तो वह श्राद्ध कहलाता है अपने पितरों को प्रसन्न करना ,उन्हें तिलांजलि देना हमारा कर्तव्य है श्राद्ध करने का सीधा सम्बन्ध दिवंगत पारिवारिक जनों का श्रद्धा पूर्वक स्मरण करना है इसे पितृ यज्ञ भी कहा जाता है गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पितर पक्ष में पितर अपने घर आते हैं और अपने स्वजनों से श्राद्ध की इच्छा रखते हैं हमारे पितर अन्न और जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं कुश और तिल से तर्पण करने पर पितर संतुष्ट होते हैं
तिल और कुश का क्या महत्व है __ तिल की उत्पत्ती भगवान् विष्णु के शरीर से मानी गई है इसका दान अक्षय होता है कुश भगवान् वासुदेव के रोम छिद्रों से उत्पन्न होता है कुश में ब्रह्मा विष्णु और महेश का वास होता है
महिलाओं को कुश और तिल के साथ तर्पण करना मना है ,इसका सात्विक कारण है कि महिला मां का रूप होती है ,जो इस संसार में मनुष्य को उत्पन्न करती है ,जबकि तर्पण अवसान का प्रतीक है
श्राद्ध के दिन चावल से पिंड बनाकर काले तिलों से श्राद्ध कर्म करना चाहिए इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन जरूरी है दान का विशेष महत्त्व है पितृ पक्ष में गाय ,कुत्ते और कोए को भोजन देने का प्रावधान है गाय के शरीर में सभी देवताओं का निवास माना गया है कुत्ता मानव को योनि मिलने तक साथ निभाता है ,एसा कहा गया है कोए को यम् का पक्षी बताया गया है ,यह म्रत्यु लोक और मानव लोक के बीच सेतु का काम करता है ,इसलिए इन्हें भोजन कराने से पिटर प्रसन्न होते हैं
आज आधुनिकता की दौड़ में लोग प्रश्न करते हैं कि मरकर कौन कहाँ गया हमें क्या पता ?सत्य क्या है कोई नही जानता पर मरने के बाद जीवात्मा जन्म लेती है यह सत्य है श्राद्ध करते समय हम प्रथ्वी पर अन्न बिखेरते हैं ,जल से तर्पण करते हैं तो जीवात्मा जिस रूप में प्रथ्वी में जन्म लेती है हमारे द्वारा दिया गया अन्न और जल उसको प्राप्त होता है चाहे वह वृक्ष योनि को प्राप्त हो ,पिशाच योनि को प्राप्त हो जलचर या कीटाणु आदि योनि को प्राप्त हो हमारे द्वारा दिया गया गंध दीपक देवत्व योनि को प्राप्त पितरों को जाता है वस्त्र ,आभूषण भोजन आदि मनुष्य योनि को प्राप्त पितरों को जाता है
श्राद्ध में सुपात्र ब्राह्मण अर्थार्त धरम का आचरण करने वाले ब्राह्मण को ही दान ,भोजन देना चाहिए वरना श्राद्ध का महत्व ख़त्म हो जाता है
वैदिक वांग्मय के अनुसार इस धरती पर जन्म लेते ही मनुष्य पर तीन ऋण चढ़ जाते हैं देव ऋण ,पितृ ऋण और रिशीऋण इन सोलह दिनों के श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध करके हम पितृ ऋण से मुक्त हो सकते हैं कर्ण ने अपना सब कुछ दान दे दिया ,जीवन भर सत्कर्म किए परन्तु पितृ ऋण नही चुकाया इसलिए उसे मोक्ष नहीं मिला और उसे पितृ ऋण चुकाने के लिए उसे पुन प्रथ्वी
पर आना पड़ा अत: पितृ ऋण से मुक्त होना हमारा दायित्व है

शनिवार, 4 जुलाई 2009

जब हमने आपरेशन करवाया --------

एक दिन हम अचानक नहाते-नहाते बाथरूम में उसी प्रकार फिसल गए जैसे कभी कभी साबुन हाथ से फिसल कर नाली में चला जाता है अक्सर लोग फिसलते हैं ,हमें भी फिसलने का सौभाग्य मिला हम ज़ोर से चिल्लाये सबलोग दौडे आए हमारे बाथरूम के दरवाजे को खोला हमें सबने अपने -अपने स्वार्थी हाथों में उसी तरह सभांला जैसे यूपीए कीसरकार को सारे स्वार्थी दल सभांल रहे थे हमें अपने टूटे दरवाजे पर इसी दिन फख्र हुआ क्योंकि अगर हमने इसकी मरम्मत पिछले महीने करा ली होती तो इस समय इसे तोड़ना पड़ता ,जिसमें कष्ट होता ,समय लगता और फ़िर से मरम्मत कराने में पैसा लगता ,हम अपनी लेटलतीफी पर मन ही मन मुस्कराए खैर ....हमारे दर्द को देखकर तुंरत डाक्टर को बुलाया गया डाक्टर ने कहा कि हड्डी वड्डी तो ठीक है पर दिमाग में चोट आई है ,लिहाजा इनका ऍम आर आई और बहुत से टेस्ट कराने पडेगें हमारी पत्नी को बहुत गुस्सा आया क्योंकि जो पैसे उनके गहने के लिए रक्खे थे ,वह अब हमारे इलाज पर खर्च होने वाले थे लिहाजा वह हर काम में खीझ रहीं थी तीन दिन के टेस्टों के बाद डाक्टर ने बताया कि हमारे दिमाग में एक गाँठ है जिसके लिए आपरेशन करना बहुत आवश्यक है एक तो आपरेशन ऊपर से दिमाग का --सारा घर सुन्न रह गया ,जिसने सुना वही आंसू बहाता चला आया और ढाढस बधने चला आया पडौसी मित्र ,शहर ,गाँव केलोग रिश्तेदार ,वह दूकानदार जहाँ से उधार सामान आता था और अक्सर पैसों के लिए लड़ाई होती थी ,वह भी इस दुःख भरे अवसर पर दौड़ता हुआ आया और बोला --बाबूजी मैं क्या सुन रहा हूँ ये कैसी बीमारी आई दिमाग का आपरेशन तो बड़ा खतरनाक होता है ,अभी आपकी उम्र ही क्या है छोटे छोटे बच्चे हैं भाभीजी कैसे सभांलेगी इनको -सुनकर बहुत दुःख हुआ आप अपने को अकेला मत समझे हम आपके साथ हैं उसकी बात सुनकर हमें बहुत सुकून मिला हमने भगवान् को धन्यवाद दिया कि हमें इस बीमारी के कारणही सही इस लाला के मीठे बचन सुनने को मिले इस तरह हर जगह सोसायटी ,क्लब ,समितियों में हमारे आपरेशन की चर्चा होने लगी ,रिश्तेदारों के फोन आने लगे ,सभी दुखी थे ,सभी पूछते कब आपरेशन होगा ,हमें तारीख जरूर बताइयेगा हम जरूर आयेगें लिहाजा हमारे आपरेशन की ज़ोर शोर से तैयार होने लगी जैसे आपरेशन दिल्ली में कराएँ या मुंबई में ,कितने दिन रहना होगा ,वैसे ज्यादातर की सलाह थी कि मुंबई ही ठीक जगह है ,इस बहाने हम मुंबई का स्टेशन तो देख लेंगे कम से कम १५--२० दिन लगेंगे ,अब इतने दिन किसी के घर रहना ठीक नही ,फ़िर सब लोग देखने आयेंगे तो उनको ठहराने और खिलाने की जिम्मेदारी भे तो आपकी है ,कहाँ तक होटल का खर्चा करेगें ,इसलिए एक फ्लैट किराये पर ले लेते हैं अब मुंबई में फ्लैट की खोज शुरू हो गई मेरे भाई के साले मुंबई में डाक्टर हैं लिहाजा सारा इंतजाम वही कर रहे थे ,मैं कुछ की कोशिश करता तो वह मेरा मुंह बंद कर देते ,देखिये आप कुछ चिंता मत करिए ,आपको तो पूरा आराम करना है ,दिमाग पर बिल्कुल ज़ोर मत डालिए पैसे के बारे में मत सोचिये ,सब भाभीजी खर्च कर रही है ,गोया भाभीजी के मायके से आ रहा है इस तरह हमारे आपरेशन की तैयारी ऐसे हो रही थी मानो कोई उत्सव हो घर पर कौन रहेगा ,हमारे साथ कौन जाएगा ,मेहमानों के खाने का कौन प्रबंध करेगा ,आदि सभी कामों की लिस्ट बननेलगी हमारी भाभीजी टीचर हैं २० दिन रहने के लिए उनहोंने अपने स्कूल में बात करी तो पता चला की उनकी छुट्टी ख़त्म हो गई हैं ,अब अगर उन्हें अवकाश चाहिए तो पे कटेगी खैर भाभीजी का उदार दिल देखिये वह इसके लिए भी तैयार हो गई क्योंकि हमारे आपरेशन का सवाल था इससे पहले हमारे खानदान में कोई आपरेशन नही हुआ था एक दो डिलीवरी हुई थी पर यह कोई आपरेशन होता है जो बिना तैयारी के हो ,फ़िर दिमाग के आपरेशन का महत्व अपना अलग ही होता है हमारे घर पर हर समय फोन की घंटी बजती ,सभी हमारे को सांत्वना जताते ,कुछ न आने की मजबूरी बताते तो कुछ मौसम के विषय में पूछते ताकि किसी दिन आकर देख जाए ,मानो किसी हिल -स्टेशन पर घूमने जा रहे हों हमारी पत्नी रोज़ शोपिगं को चली जाती क्योंकि हमारे ओपरेशन का सामान खरीदना था और हमारे बच्चे पीछे परेशान न हों तो घर में खाने पीने की चीजें ठीक प्रकार से रखनी थी हम जैसे ही सोने की कोशिश करते कभी फ़ोन तो कभी दरवाजे की घंटी बज उठती और उनसे बताने में ही हमारा आराम और समय ख़त्म हो जाता ,सबसे ज्यादा कोफ्त तो तब होती जब लोग हमारी पत्नी से कहते कि हमारी हर बात पूरी की जाए चाहे इसके लिए कितना भी खर्चा हो जाए या कुछ भे करना पड़े क्योंकि आपरेशन दिमाग का है ,इसलिए हमें किसी तरह का टेंशन नही लेना है ,हम कैसे बताते कि मिजाजपुर्सी करने वाले ही हमारे सबसे बड़े सर दर्द हैं और उनके सांत्वना भरे शब्द ही हमें सबसे ज्यादा टेंशन देते हैं हमारा ही आपरेशन ,हमारा ही पैसा खर्च हो रहा और हमें ही सब चुप करा कर अपना निर्णय ले रहे थे ,हमसे कह देते आपको कुछ टेंशन लेने की ज़रूरत नही है ,यह सुनकर हमें अपने पर शर्म आ रही थी ,हम जीते जी मरे के समान हो गए थे हमारे भाई बंधुओं के फोन आते कि हमें जरूर बताइयेगा कि आपरेशन की तारीख क्या है हम जरूर आयेंगे ,क्योंकि हमारे खानदान में बड़ी मुश्किलों से आपरेशन हो रहा है आपरेशन रूम का हिलता दरवाजा ,बाहर खड़े सगे संबन्धी को ढाढस देते लोग ,यह सब तो हमने सिर्फ़ सीरीयलों या पिक्चरों में ही देखा है ,अब भाग्य से यह देखने का मौका मिला है तो इसे क्यों छोडे एक दिन हमारी रिश्ते की बहन का फोन आया -भैया आप आपरेशन ऐसे हॉस्पिटल में करना जहाँ एक मन्दिर भी हो ताकि आपरेशन के समय भाभीजी आपकी उम्र के लिए दुआ कर सकें और भगवान् से अपने सिंदूर का वास्ता देकर आपके जीवन को बच्चा सकें क्योंकि जीवन लेने देने का अधिकार तो ऊपर वाले का है पर भावुक डायलाग बोलने पर भगवान् भी पिघल जाते हैं तो भइया चाहे इसके लिए प्राइवेट नर्सिगं होम में जाना पड़े पर आपरेशन वहीं करवाईयेगा जहाँ पर एक मन्दिर भी हो सुनकर हमें लगा कि हम अपना आपरेशन नहीं ,फ़िल्म की शूटिंग करवाने जा रहे हो ,और हमारे सगे संबन्धी हमारे निर्देशक बने हों आठ दिन बाद हमारा आपरेशन था ,हमने सोचा इतने दिन से दवा खा रहे हैं चलो डाक्टर की राय ले ली जाए और हम अचानक दिल्ली चले गए वहां हमने अपना फ़िर से परीक्षण करवाया पुराणी रिपोर्ट दिखाई जो दवा खा रहे थे वो दिखाई ,डाक्टर ने कहा कि आपके दिमाग में गांठ नही थी सूजन थी जो गाँठ जैसी दिख रही थी ,अब आपको आपरेशन की जरूरत नही है ,आप यह दवा खा लें और एक हफ्ते में ठीक हो जायेंगे सुनकर हमें उतनी ही खुशी हुई जितनी फिल्म के हिटहो जाने पर निर्देशक को होती है हम खुशी खुशी घर लौटे ,सबसे पहले हमने अपनी भाभीजी को फोन किया ताकि वो अपनी छुट्टी न लें भाभीजी ने जैसे ही सूना -वह गुस्से से विफर गई बोली -भइया यह क्या कहा,आपने तो हमारी नाक कटा दी ,हमने तो सारी तैयारी कर ली थी स्कूल से २० दिन की छुट्टी ले ली थी अब कैसे कहेंगे कि आपका आपरेशन नही हो रहा है हमारी इज्ज़त का सवाल है अपनी इज्ज़त बचने के लिए अब कहीं न कहीं तो जाना ही पडेगा और उनहोंने गुस्से से फोन पटक दिया अपने लोगों की नफरत का यह पहला अध्याय था उसके बाद तो जिसने सुना कि हमारा आपरेशन नही हो रहा वही फोन पर हमसे लड़ने लगा ,किसी ने कहाकि हमने बड़ी मुश्किल से लाइन में लगकर रिजर्वेशन करवाया था और आपने हंसकर ख़बर सूना दी किअप्रेशन का प्रोग्राम केंसिल हो गया ,यह तो आपने अच्छा नही किया ,उनकी आवाज में वैसा ही दर्द था जैसा किसी की लडकी की सगाई टूटते वक्त होता है एक साली ने तो यहाँ तक कह दिया कि आपने तो आपरेशन न करा कर अपना पैसा बचा लिया पर हमारी जो बदनामी हुई उसकी भरपाई कैसे होगी जिसे देखो वही आपरेशन के नाम पर हम पर ताने कस रहा था आपरेशन के नाम पर जो हमें हाथों हाथ ले रहे थे ,वह आपरेशन न होने पर हमसे छिटक कर दूर जा गिरे थे गोया कि वह सभी मित्र संबन्धी जो आपरेशन होने पर हमारे बहुत करीब आ गए थे ,हमारे दुःख के साथी थे ,हमारे रोने पर भी हमें हँसते हुए ढाढस दे रहे थे ,वह सब हमारे सुख में रोते हुए ,हमसे दूर चले गए थे हमारा इस जहाँ में कोई नही रह गया था खैर .......हमने भी मन में सोचा कि कौन किसका होता है ,भरे मन से अपने पूर्व जीवन में लौटना चाहिए अब हमारी पत्नी ने फोन का बिल ,बिजली का बिल ,खरीददारी का बिल और अन्य बिलों का ब्यौरा दिया जो कुल ९०ह्जार का था डाक्टर ने २ लाख का खर्चा बताया था उस हिसाब से आधा खर्चा हो चुका था रिश्तेदारों के दूर होने का दर्द झेला सो अलग ,हम कितने असहाय हो गए थे आपरेशन न कराकर --अभी हम ये सोच ही रहे थे की मुंबई से प्रापर्टी डीलर का एक पत्र आया जिसमें लिखा था कि फ्लैट रिजेक्ट करने के लिए जो प्रार्थना पत्र भेजा था वह देर से मिला इसलिए हम पूरे माह का किराया ५०,००० काटकर बाकी पैसा लौटा रहे हैं धन्यवाद --यानी कि १ लाख ४५ हजार रुपयों का खर्चा हो गया और हमें क्या मिला ---रिश्तेदारों की बेरूखी और पैसों की बर्बादी ----काश:.....हमने समय रहते अपना आपरेशन करा लिया होता ,हाय ------------

शनिवार, 20 जून 2009

जीवन और रिश्ते

जीवन और रिश्ते जीवन एक सुखद अनुभूति है जिसे हम न जाने क्यों आनंदित होकर जी नही पाते ,यह मानव का स्वभाव होता है कि जो उसके पास होता है वह उसे दिखाई नही देता ,और जो नही होता उसके पीछे भागता है जैसे अगर हमारा एक दांत टूट जाए तो जीभ बार बार उस जगह जाती है ,उस स्थान को टटोलती है --वैसे ही मानव का मन खाली जगह को टटोलता है ,भरी जगह के प्रति अंधा होता है ,अगर प्रभू की दी नेमतों को हम संजो कर रखे तो एक सार्थक व सुखी जीवन जी सकते हैं जीवन एक उत्सव है -उत्सव अकेले आनंद नही देते इसलिए हमें रिश्तों की जरुरत होती है रिश्ते कुछ तो जन्म के साथ ही जन्म लेते हैं पर कुछ रिश्ते हमें जीवन जीते हुए कदम कदम पर प्राप्त होते हैं रिश्ते बनाना आसन है पर ताउम्र निभाना मुश्किल होता है ,हमें अपने जीवन में रिश्ते निभाने में सुई धागा बनना चाहिए कैंची नही ,अगर अहंकार को त्यागकरने से थोड़ा झुकने से किसी रिश्ते को बचाया जा सकता है तो यह कीमत ज्यादा नही हैं ,कैची तो सदा चीजों को काटती है अलग करती है पर क्या ये उचित है रिश्ते कीअहमियत रिश्ते के टूटने के बाद महसूस होती है जब रिश्ता टूटे और पश्चाताप हो तो समझो कि रिश्ता गहरा था पर कभी जब रिश्ता टूटता है और हमें उस पर पश्चाताप नही होता तो समझों कि वह रिश्ता गहरा नही था ,वास्तव में हम उस उसे ढो रहे थे ,जीवन नैया को खेने के लिए रिश्तों की पतवार का होना जरूरी है इसलिए रिश्तों को सहेज कर रखना चाहिए

शुक्रवार, 12 जून 2009

कौसानी --एक प्राकृतिक संपदा

मेरी कौसानी यात्रा ---एक स्मृति
_____________________
आज प्रकृति को जब इतने करीब से देखा तो मन मयूर नाच उठा ,कौसानी कहते ही सुमित्रानंदन पन्त की याद जेहन में आ जाती है वह कवि बने तो इसमें उनकी प्रकृति और उनके वातावरण का बहुत बड़ा हाथ रहा यह शैल
पताकाएं ,चारों तरफ़ प्राकृतिक उपादान ,अनंत गहराई तक फैले पेड़ और हरियाली ,दूर आकाश में उगता सूरज मानों अपनी तरफ़ खींच रहे हैं ,मन करता है कि यहीं बैठकर जीवन की सम्पूर्ण इच्छाए पूरण करूं बैजनाथ जी के मन्दिर जाते समय रास्ते का आच्छादित जंगल मन को मोह गया हालाकि रिसोर्ट होटल से मानव को सुविधा मिल जाती है पर इनके निर्माण से प्रकृति का विच्छेदन होता है हमारी प्राकृतिक सम्पदाएँ इसीलिये विलीन हो रही हैं क्योंकिहम भौतिक सुविधा के लिए सुकुमार प्रकृति का दोहन कर देते हैं आज बहुत दिनों बाद चिडियों की चाह चाहा हट सूनी ,यह कलरव सुने सदियाँ बीत गई ,-क्यों नहीं यह शब्द शहरों में सुनाई देते हैं ,क्योंकि हमारे शहर मोटर ,मशीन के शब्दों के आदी हो गए हैं ,हमें विचार करना होगा कि हमसे कहाँ चूक हो रही है ,कहीं एसा न हो कि हमसे देर हो जाए
चाय के बागान में उनके गुच्छों को देखकर मन प्रमुदित हो गया ,यह प्रकृति का हमें उपहार है कि एक ही स्थान पर हमें अनेक प्रकार का सौन्दर्य मिलता है ,हम प्रकृति का धन्यवाद तक नही करते हैं रे मानव -तू सावधान हो जा ,जो प्रकृति तेरा पोषण करती है तू उसका संचरण कर ,इसे संभाल कर रख इस पर अपने स्वार्थ की लाठी न चला
सदा अपनों ने ही अपनों को गिराया है ,
विभीषण ने ही लंका को धाया है
उतना नहीं खाया वन के जीवों ने
जितना आदमी ने जंगल को खाया है